कौन कहता है, तुम मेरी चाहतों से लिपट जाओ
सच ! दूर भी रहो, तो कम से कम सहमे न रहो !
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एक दिन किसी ने, मेरा कद नापना चाहा था
सच ! उसे पता नहीं था कि मैं बैठा हुआ हूँ !!
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उफ़ ! कौन कहता है 'उदय' स्त्री ही स्त्री की विरोधी है
हमें तो घड़ी-दो-घड़ी की, जोर आजमाईश लगती है !
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लोग कहते हैं भूकंपी इंट्री हुई है हमारी
तब ही तो धुरंधर, सहमे सहमे हुए हैं !
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आज सत्य के संग, अहिंसा रूपी अनशन पर था
सच ! अनशन जीत गया पर आन्दोलन जारी है !
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नीचे पडी चवन्नी उठाने, क्या झुक गया यारो
ख़ामो-खां मुझे नेता समझ बदनाम कर डाला !
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जो फासले औरतों में, वही पुरुषों में भी देखे गए हैं
सच ! फर्क रहा है तो, मिजाजों में रहा है !!
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बदलते बदलते आदतें, हम खुद बदल गए
कभी होते थे मिट्टी, अब सोना हो गए !!
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सच ! न जाने क्या दास्ताँ है, मुहब्बत की, फसानों की
तनिक उलझन इधर भी है, तनिक उलझन उधर भी है !
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बस इतनी दुआ करते है 'माँई' से मुसीबत न आए
अगर आए तो उसके पहले ही क़यामत आ जाए !
4 comments:
bhtrin prstutikaran ....akhtar khan akela kota rajsthan
हर शख्स आज सहमा हुआ है।
जो फासले औरतों में, वही पुरुषों में भी देखे गए हैं
सच ! फर्क रहा है तो, मिजाजों में रहा है !!
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वाकई फर्क स्वभाव का ही है , स्त्री पुरुष होने का नहीं !
कौन कहता है, तुम मेरी चाहतों से लिपट जाओ
सच ! दूर भी रहो, तो कम से कम सहमे न रहो !bhaut hi acchi gazal...
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