Sunday, October 2, 2011

... धुरंधर, सहमे सहमे हुए हैं !

कौन कहता है, तुम मेरी चाहतों से लिपट जाओ
सच ! दूर भी रहो, तो कम से कम सहमे न रहो !
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एक दिन किसी ने, मेरा कद नापना चाहा था
सच ! उसे पता नहीं था कि मैं बैठा हुआ हूँ !!
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उफ़ ! कौन कहता है 'उदय' स्त्री ही स्त्री की विरोधी है
हमें तो घड़ी-दो-घड़ी की, जोर आजमाईश लगती है !
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लोग कहते हैं भूकंपी इंट्री हुई है हमारी
तब ही तो धुरंधर, सहमे सहमे हुए हैं !
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आज सत्य के संग, अहिंसा रूपी अनशन पर था
सच ! अनशन जीत गया पर आन्दोलन जारी है !
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नीचे पडी चवन्नी उठाने, क्या झुक गया यारो
ख़ामो-खां मुझे नेता समझ बदनाम कर डाला !
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जो फासले औरतों में, वही पुरुषों में भी देखे गए हैं
सच ! फर्क रहा है तो, मिजाजों में रहा है !!
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बदलते बदलते आदतें, हम खुद बदल गए
कभी होते थे मिट्टी, अब सोना हो गए !!
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सच ! न जाने क्या दास्ताँ है, मुहब्बत की, फसानों की
तनिक उलझन इधर भी है, तनिक उलझन उधर भी है !
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बस इतनी दुआ करते है 'माँई' से मुसीबत न आए
अगर आए तो उसके पहले ही क़यामत आ जाए !

4 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

bhtrin prstutikaran ....akhtar khan akela kota rajsthan

प्रवीण पाण्डेय said...

हर शख्स आज सहमा हुआ है।

वाणी गीत said...

जो फासले औरतों में, वही पुरुषों में भी देखे गए हैं
सच ! फर्क रहा है तो, मिजाजों में रहा है !!
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वाकई फर्क स्वभाव का ही है , स्त्री पुरुष होने का नहीं !

सागर said...

कौन कहता है, तुम मेरी चाहतों से लिपट जाओ
सच ! दूर भी रहो, तो कम से कम सहमे न रहो !bhaut hi acchi gazal...