Sunday, October 2, 2011

मंजिल की ओर ...

तेरे, मेरे
जज्बे, इरादे, हौसले
चल रहे हैं
बढ़ रहे हैं
सत्य-अहिंसा के पथ पर
सफ़र जारी है, कदम जारी हैं
मंजिल की ओर ... !

तुम, हम, या कोई और
कौन जाने
कौन कितने फासले पे है
न दाएं, न बाएं, न पीछे
आगे, सिर्फ आगे
चलते चलो, बढ़ते चलो
हमें चलना है, आगे बढ़ना है
मंजिल की ओर ... !

न थमना है
न थकना है
न हारना है
तुम्हें, हमें, चलते चलना है
आज या कल
पहुँचना है, पहुँच जाना है
तुम्हें, हमें
अपनी अपनी मंजिल पर ... !!

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

चलते रहना,
जीवन अपना।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

चलने में बढ़ने में ही जीवन की सार्थकता है...
सुन्दर अभिव्यक्ति...
सादर...

सागर said...

न थमना है
न थकना है
न हारना है
तुम्हें, हमें, चलते चलना है
आज या कल
पहुँचना है, पहुँच जाना है
तुम्हें, हमें
अपनी अपनी मंजिल पर ... !!yahi jimndgi ka sach hai... acchi rachna....