Saturday, August 6, 2011

उजाले की ओर ...

लम्बे ... घोर अंधेरे के बाद
चलते चलते, राह में
जब
नजर आती है, हमें
एक उम्मीद की किरण !

किरण के -
नजर आते ही, नजर आने पर ही
शुरू होता है
पुन: एक नया सफ़र !

घोर अंधेरे को चीरते हुए
इस पार से, उस पार की ओर
उम्मीदों
आशाओं
जिज्ञासाओं के संग !

नए उत्साह
नए कदमों
नई ऊर्जा के संग !!

हताशाओं
मायुशियों
को पीछे छोड़कर !!

सिर्फ, सिर्फ आगे की ओर ...
कदम-दर-कदम
छोटे-छोटे कदमों के संग
हम बढ़ते हैं
अंधकार से, उजाले की ओर !!

6 comments:

संगीता पुरी said...

आगे
सिर्फ आगे
सिर्फ आगे की ओर ...
कदम-दर-कदम
छोटे-छोटे कदमों के संग
हम बढ़ते हैं
अंधकार से ... उजाले की ओर !!

बहुत सही !!

ASHOK BAJAJ said...

बहुत अच्छी कविता , बधाई .

Dev said...

लाजवाब प्रस्तुति .....अति सुन्दर

प्रवीण पाण्डेय said...

धीरे धीरे, पर हम प्रकाश की ओर बढ़ें।

संजय भास्‍कर said...

wonderful poem and message

संजय भास्‍कर said...

मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये