Wednesday, November 14, 2018

कुछ महक सी है फिजाओं में ...

01

खुद का, खुद से, खुद हो जाना, 'खुदा' हो जाना है 'उदय'
कब हम करेंगे ये करिश्मा ये बताओ तो जरा ?

02

कुछ रोशनी खुद की भी जगमगाने दो
सिर्फ दिये काफी नहीं गरीबों के लिए !

( दिये = दीप, दीपक )

03

फ़िराक में तो थे कि वो 'खुदा' कहला जाएं मगर
दो घड़ी की रौशनी भी वो दे ना सके !

04

किस बात पे रोएं या किस बात पे हंसे
सारा जग है भूल-भुलैय्या ?

05

हमारी आशिकी भी इक दिन उन्हें रुला देगी
जिस दिन उन्हें कोई उनसा मिलेगा !

06

कुछ महक सी है फिजाओं में
कोई आस-पास है शायद !

07
मेरे निबाह की तू फिक्र न कर
कोई और भी सफर में साथ है मेरे !

( निबाह = निर्वाह, गुजारा, साथ )

08

गर तुझको 'खुदा' का खौफ है तो पीना छोड़ दे
वर्ना ये बता, 'खुदा' ने कब कहा पीना गुनाह है ?

09

यूँ तो, वक्त के साथ फरिश्ते भी बदल जाते हैं
फिर किसी पे क्यूँ करें एतबार उतना ?

10

सारा शहर जानता है उनके सारे इल्जाम झूठे हैं
मगर फिर भी, कचहरी लग रही है !

~ उदय