01
ये सच है, तू सदा ही मेरी ख्वाहिश रही है मगर
बच्चों की भूख से बड़ी कहाँ होती हैं ख्वाहिशें ?
02
फ़ना हो गए, कल फिर कई रिश्ते
एक चाँद कितनों संग निभा पाता ?
03
कैसा गुमां जिन्दगी का या कैसा रंज मौत का
कोई दास्तां नहीं, इक दास्तां के बाद ?
04
ये सियासत है या है कोई परचून की दुकां
कोई सस्ता, तो कोई बेतहाशा कीमती है ?
05
न कोई उनकी ख़ता थी न कोई मेरी ख़ता थी
राहें जुदा-जुदा थीं ..... ..... जुदा-जुदा चलीं !
06
ताउम्र तन्हाई थी
कुछ घड़ी जो तुम मिले तो कारवें बनने लगे !
07
ये किसे तूने
मेरी तकलीफों के लिए मसीहा मुकर्रर कर रक्खा है
जिसे खुद
अपनी तकलीफों से फुर्सत नहीं मिलती ?
08
कोई ज़ख्म यादों के सफर में है
कब तलक बचकर चलेगा वो मेरी नजर में है
उसे भी साथ चलना होगा उसके
ज़ख्म जो हर घड़ी जिसकी नजर में है !
09
किस बात का गुमां करूँ किस बात का मैं रंज
पहले फक्कड़ी मौज थी अब है औघड़ी शान !
~ उदय
ये सच है, तू सदा ही मेरी ख्वाहिश रही है मगर
बच्चों की भूख से बड़ी कहाँ होती हैं ख्वाहिशें ?
02
फ़ना हो गए, कल फिर कई रिश्ते
एक चाँद कितनों संग निभा पाता ?
03
कैसा गुमां जिन्दगी का या कैसा रंज मौत का
कोई दास्तां नहीं, इक दास्तां के बाद ?
04
ये सियासत है या है कोई परचून की दुकां
कोई सस्ता, तो कोई बेतहाशा कीमती है ?
05
न कोई उनकी ख़ता थी न कोई मेरी ख़ता थी
राहें जुदा-जुदा थीं ..... ..... जुदा-जुदा चलीं !
06
ताउम्र तन्हाई थी
कुछ घड़ी जो तुम मिले तो कारवें बनने लगे !
07
ये किसे तूने
मेरी तकलीफों के लिए मसीहा मुकर्रर कर रक्खा है
जिसे खुद
अपनी तकलीफों से फुर्सत नहीं मिलती ?
08
कोई ज़ख्म यादों के सफर में है
कब तलक बचकर चलेगा वो मेरी नजर में है
उसे भी साथ चलना होगा उसके
ज़ख्म जो हर घड़ी जिसकी नजर में है !
09
किस बात का गुमां करूँ किस बात का मैं रंज
पहले फक्कड़ी मौज थी अब है औघड़ी शान !
~ उदय
1 comment:
दीपोत्सव की अनंत मंगलकामनाएं
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