Saturday, November 24, 2018

ये उनकी बेरुखी का ही असर है शायद ... !

01

हम उन्हें भी याद आएंगे, इक दिन देख लेना तुम
उन्हें लगने तो दो ठोकर किसी सोने की मूरत से ?

02

मिट जाएँ खुद-ब-खुद अंधेरे शायद
वर्ना अब कोई एतबार के काबिल न रहा !

03

अब वो जो आये हैं तो कुछ बात तो होगी ही
वैसे भी, बिना बात के वो आते कब हैं !

04

तमाम कोशिशें नाकाम ही रहीं उनकी 'उदय'
वो, झूठ चेहरे से छिपा नहीं पाए !

05

जीत की चाह इत्ती है, कि कुछ मुगालते में अब भी हैं
शायद ! जब तक हारेंगे नहीं ख्वाब टूटेंगे नहीं !!

06

ये उनकी बेरुखी का ही असर है शायद
वर्ना, हम आदमी कहाँ थे पहले !

07

मुगालतों की कहानी थी भली
कुछ इस तरह, वो जिंदगी से रु-ब-रु न हो सके !

08

दलालों की मेहरवानी से सौदे हो रहे हैं तय
वर्ना, आदमी की कोई कीमत नहीं है !

09

फरिश्तों की खामोशियाँ समझो 'उदय'
कहीं कुछ चूक हो रही है शायद !

~  उदय

1 comment:

रश्मि प्रभा... said...

https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/11/blog-post_25.html