Saturday, November 3, 2018

ख्वाहिशें

01

ये सच है, तू सदा ही मेरी ख्वाहिश रही है मगर
बच्चों की भूख से बड़ी कहाँ होती हैं ख्वाहिशें ?

02

फ़ना हो गए, कल फिर कई रिश्ते
एक चाँद कितनों संग निभा पाता ?

03

कैसा गुमां जिन्दगी का या कैसा रंज मौत का
कोई दास्तां नहीं, इक दास्तां के बाद ?

04

ये सियासत है या है कोई परचून की दुकां
कोई सस्ता, तो कोई बेतहाशा कीमती है ?

05

न कोई उनकी ख़ता थी न कोई मेरी ख़ता थी
राहें जुदा-जुदा थीं ..... ..... जुदा-जुदा चलीं !

06

ताउम्र तन्हाई थी
कुछ घड़ी जो तुम मिले तो कारवें बनने लगे !

07

ये किसे तूने
मेरी तकलीफों के लिए मसीहा मुकर्रर कर रक्खा है

जिसे खुद
अपनी तकलीफों से फुर्सत नहीं मिलती ?

08

कोई ज़ख्म यादों के सफर में है
कब तलक बचकर चलेगा वो मेरी नजर में है

उसे भी साथ चलना होगा उसके
ज़ख्म जो हर घड़ी जिसकी नजर में है !

09

किस बात का गुमां करूँ किस बात का मैं रंज
पहले फक्कड़ी मौज थी अब है औघड़ी शान !

~ उदय

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

दीपोत्सव की अनंत मंगलकामनाएं