01
आपको एक अच्छा कवि बनने के लिए
संपादक, प्रकाशक, मालिक या
इनसे भी बड़ा स्वयंभू होना जरूरी होगा
यदि आप
इनमें से कोई एक भी नहीं हैं तो
तो भी कोई बात नहीं
आप कविताएँ लिखते रहें
शायद
आपकी किसी कविता को पढ़कर
इनमें से किसी के रौंगटे खड़े हो जाएं
या किसी को इतना विचलित कर दे कि वो
आपको
कवि मानने को मजबूर हो जाये
लेकिन
ऐसा कब होगा
इसकी कोई गारंटी नहीं है
सच कहूँ तो
कविताएँ लिखना एक जोखिम का काम है ??
02
किसी के रूठने की, कोई हद तो होगी
या ये सफर ....... यूँ ही चलता रहेगा ?
03
ये कौन किसे मार रहा है
राम रावण को, या रावण रावण को ?
ये कौन भ्रम में है
तू, मैं, या कोई और .... ??
एक रावण जो -
तुम्हारे भीतर है, मेरे भीतर है, हर किसी के भीतर है
उसे कौन -
पाल-पोष रहा है .... ???
04
इल्जामों की फिक्र किसे है 'उदय'
फिक्र तो इस बात की है कि अदालतें उनकी हैं !
05
कैसा गुमां, कैसा गुरुर, और कैसी मगरूरियत
बस, मिट्टी से मिट्टी तक का सफर है ?
06
खामोशियाँ भी जुर्म ही हैं अगर
खामोशियाँ सत्ता की हैं ?
07
कुछ झूठ, कुछ फ़रेब,
कुछ ऐसी ही मिली-जुली फितरत है उसकी,
मगर फिर भी
वो खुद को 'खुदा' कहता है ?
08
न दुख के बादल थे औ न ही गम की घटाएँ थीं मगर
रिमझिम-रिमझिम बरस रही थीं तकलीफें !
09
चाँद का चाँद-सा होना लाज़िमी था
मगर मुस्कान उसकी उससे जियादा कातिलाना थी ?
( लाज़िमी = उचित )
10
आज बाजार में गजब की चिल्ल-पों है 'उदय'
लगता है किसी बेजुबाँ की नीलामी है शायद ?
~ उदय
आपको एक अच्छा कवि बनने के लिए
संपादक, प्रकाशक, मालिक या
इनसे भी बड़ा स्वयंभू होना जरूरी होगा
यदि आप
इनमें से कोई एक भी नहीं हैं तो
तो भी कोई बात नहीं
आप कविताएँ लिखते रहें
शायद
आपकी किसी कविता को पढ़कर
इनमें से किसी के रौंगटे खड़े हो जाएं
या किसी को इतना विचलित कर दे कि वो
आपको
कवि मानने को मजबूर हो जाये
लेकिन
ऐसा कब होगा
इसकी कोई गारंटी नहीं है
सच कहूँ तो
कविताएँ लिखना एक जोखिम का काम है ??
02
किसी के रूठने की, कोई हद तो होगी
या ये सफर ....... यूँ ही चलता रहेगा ?
03
ये कौन किसे मार रहा है
राम रावण को, या रावण रावण को ?
ये कौन भ्रम में है
तू, मैं, या कोई और .... ??
एक रावण जो -
तुम्हारे भीतर है, मेरे भीतर है, हर किसी के भीतर है
उसे कौन -
पाल-पोष रहा है .... ???
04
इल्जामों की फिक्र किसे है 'उदय'
फिक्र तो इस बात की है कि अदालतें उनकी हैं !
05
कैसा गुमां, कैसा गुरुर, और कैसी मगरूरियत
बस, मिट्टी से मिट्टी तक का सफर है ?
06
खामोशियाँ भी जुर्म ही हैं अगर
खामोशियाँ सत्ता की हैं ?
07
कुछ झूठ, कुछ फ़रेब,
कुछ ऐसी ही मिली-जुली फितरत है उसकी,
मगर फिर भी
वो खुद को 'खुदा' कहता है ?
08
न दुख के बादल थे औ न ही गम की घटाएँ थीं मगर
रिमझिम-रिमझिम बरस रही थीं तकलीफें !
09
चाँद का चाँद-सा होना लाज़िमी था
मगर मुस्कान उसकी उससे जियादा कातिलाना थी ?
( लाज़िमी = उचित )
10
आज बाजार में गजब की चिल्ल-पों है 'उदय'
लगता है किसी बेजुबाँ की नीलामी है शायद ?
~ उदय
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