जन लोकपाल
अभी-भी ... जिन्दा है ... लहु-लुहान पड़ा है,
न कराह रहा है ...
न तड़फ रहा है ...
क्यों ? .... क्योंकि - .... वह कोमा में है !
न ड्रिप चढ़ी है, न आई.सी.यू. में है,
अभी-भी ... जिन्दा है ... लहु-लुहान पड़ा है,
न कराह रहा है ...
न तड़फ रहा है ...
क्यों ? .... क्योंकि - .... वह कोमा में है !
न ड्रिप चढ़ी है, न आई.सी.यू. में है,
संग ... न कोई नर्स है, न ही कोई डॉक्टर है,
अगर कुछ है ... तो ...
पत्तों की छाँव है
कभी ठंडी, तो कभी गर्म हवाएँ हैं
जन लोकपाल
पीपल के पेड़ के नीचे
बेसुध पड़ा है
जान बाकी है ... साँसें चल रही हैं ... जिन्दा है ... ,
पीठ पे
बेसुध पड़ा है
जान बाकी है ... साँसें चल रही हैं ... जिन्दा है ... ,
पीठ पे
खंजर भौंकने वाले
आज भी हाथों में खंजर लिए
खुलेआम ... घूम रहे हैं
खुलेआम ... घूम रहे हैं
शान से ... मान से ... सम्मान से ... ???
3 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " खुशियाँ बाँटते चलिये - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सटीक
सही प्रहार
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