जब जी-हुजूरी और चमचागिरी ही मकसद था 'उदय'
तो जरुरत क्या थी उन्हें, कवि या लेखक बनने की ?
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उन्ने प्रचार की जगह दुस्प्रचार को तबज्जो दी है
अब 'खुदा' ही जाने, कैसे हो पक्की जीत उनकी ?
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लो 'उदय', सोशल साइट्स सोशल न हुईं घर का आँगन हुई हैं
पति पत्नियों को, और पत्नियां पतियों को प्रमोट कर रही हैं ?
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वैसे, इस बार तो सत्ता पे उनका हक़ था 'उदय'
मगर अफसोस, उनका तरीका गलत निकला ?
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उन्ने, उन्ने, उन्ने, उन्ने,…… सिर्फ दल ही तो बदली है 'उदय'
कोई गुनह थोड़ी न किया है, जो वे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हों ?
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2 comments:
चुनावी मौसम का खुमार यहाँ भी झलक और छलक रहा है :)
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