Tuesday, October 22, 2013

टेलीफोनिक कविता ...


हैलो … 
हाँ  … 
हाँ  … 
हूँ  … 
हाँ  … 
कौन  … 
कैसे  … 
कब  … 
ओह  … 
उफ्फ …  
हूँ  … 
हाँ  … 
हाँ, प्रणाम !

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

पहचान की बढ़ती दूरियाँ

Pratibha Verma said...

समय की कहें… या वक्त का तकाजा !!

Guzarish said...

आपकी यह रचना आज बुधवार (23-10-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 154 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
एक नजर मेरे अंगना में ...
''गुज़ारिश''
सादर
सरिता भाटिया