Sunday, September 1, 2013

कमिटमेंट ...

अपराधी, पुलिस, सरकार, तीनों हैं संशय में यारो
सच ! अब 'खुदा' ही जाने कौन किस्से डर रहा है ?

अब तो सिर्फ … आसा-औ-राम … का है भरोसा
वर्ना, जेल की कालकोठरी में, घुटेगा दम उसका ?

दान, दया, दवा, दारु, औ दर्द की दुकां है उनकी
वोट भी उनका है और है सरकार भी उनकी ??

आज जिनकी जुबां पे, छिलने के निशान नहीं हैं 'उदय'
हम कैसे मान लें, उन्ने कभी इंकलाबी नारे लगाये हैं ?

अब तुम, उनकी मजबूरी भी तो तनिक समझो यारो
सच ! वे दुम हिलाने का कमिटमेंट कर चुके हैं पहले ?

2 comments:

Rajendra kumar said...

बेहतरीन उदबोधक उम्दा प्रस्तुती,आभार।

प्रवीण पाण्डेय said...

सामयिक कटाक्ष