अपराधी, पुलिस, सरकार, तीनों हैं संशय में यारो
सच ! अब 'खुदा' ही जाने कौन किस्से डर रहा है ?
…
अब तो सिर्फ … आसा-औ-राम … का है भरोसा
वर्ना, जेल की कालकोठरी में, घुटेगा दम उसका ?
…
दान, दया, दवा, दारु, औ दर्द की दुकां है उनकी
वोट भी उनका है और है सरकार भी उनकी ??
…
आज जिनकी जुबां पे, छिलने के निशान नहीं हैं 'उदय'
हम कैसे मान लें, उन्ने कभी इंकलाबी नारे लगाये हैं ?
…
अब तुम, उनकी मजबूरी भी तो तनिक समझो यारो
सच ! वे दुम हिलाने का कमिटमेंट कर चुके हैं पहले ?
…
सच ! अब 'खुदा' ही जाने कौन किस्से डर रहा है ?
…
अब तो सिर्फ … आसा-औ-राम … का है भरोसा
वर्ना, जेल की कालकोठरी में, घुटेगा दम उसका ?
…
दान, दया, दवा, दारु, औ दर्द की दुकां है उनकी
वोट भी उनका है और है सरकार भी उनकी ??
…
आज जिनकी जुबां पे, छिलने के निशान नहीं हैं 'उदय'
हम कैसे मान लें, उन्ने कभी इंकलाबी नारे लगाये हैं ?
…
अब तुम, उनकी मजबूरी भी तो तनिक समझो यारो
सच ! वे दुम हिलाने का कमिटमेंट कर चुके हैं पहले ?
…
2 comments:
बेहतरीन उदबोधक उम्दा प्रस्तुती,आभार।
सामयिक कटाक्ष
Post a Comment