गुजरती उम्र पर, तनिक तो तरस खाओ यारो
कब्र में पाँव लटके हों तो यूँ मटका नहीं करते ?
...
तू इत्मिनान रख साक़ी, हम शराबी हैं मदहोश नहीं हैं
गर लार टपकी भी तो इन आँखों से ही चख लेंगे तुझे ?
…
अरे कुछ तो कह, भले चुप-चाप कह
हमें आती है, तेरी आँखों की बोली ?
…
हुशियारी में तो वो गजब माहिर हैं 'उदय'
मगर अफसोस, आज भी फटेहाल हैं वो ?
…
रेज़गारी का चलन तो कब का बंद हो गया है दोस्त
इस खनखनाहट से तुम किसे डरा रहे हो आज ??
…
कब्र में पाँव लटके हों तो यूँ मटका नहीं करते ?
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तू इत्मिनान रख साक़ी, हम शराबी हैं मदहोश नहीं हैं
गर लार टपकी भी तो इन आँखों से ही चख लेंगे तुझे ?
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अरे कुछ तो कह, भले चुप-चाप कह
हमें आती है, तेरी आँखों की बोली ?
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हुशियारी में तो वो गजब माहिर हैं 'उदय'
मगर अफसोस, आज भी फटेहाल हैं वो ?
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रेज़गारी का चलन तो कब का बंद हो गया है दोस्त
इस खनखनाहट से तुम किसे डरा रहे हो आज ??
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3 comments:
All two liners excellent!!!
कविता में कड़वा सच है। बहुत सुन्दर
सत्य बखानती,
रक्त उफानती।
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