सच ! साम्प्रदायिकता की फसल उन्ने खूब उगाई है
कभी-कभी, पकने के पहले भी उसे वो काट लेते हैं ?
…
किसे थी खबर, कि वो तिलस्मी हैं 'उदय'
वर्ना, आज हम उनकी कैद में नहीं होते ?
…
देखना इक दिन 'उदय', वो आपस में कट मरेंगे
किसी के भी जेहन में इंसानियत नहीं बसती ?
…
उफ़ ! ऐंसा नहीं है कि यहाँ मुफ़लिसी नहीं है
हफ़्तों हो गए उनसे मिले-बिछड़े हमें यारा ?
….
किस किस को है परवाह तेरी जमाने में आज
बस एक बार, तू जीते-जी मर कर तो देख ??
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कभी-कभी, पकने के पहले भी उसे वो काट लेते हैं ?
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किसे थी खबर, कि वो तिलस्मी हैं 'उदय'
वर्ना, आज हम उनकी कैद में नहीं होते ?
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देखना इक दिन 'उदय', वो आपस में कट मरेंगे
किसी के भी जेहन में इंसानियत नहीं बसती ?
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उफ़ ! ऐंसा नहीं है कि यहाँ मुफ़लिसी नहीं है
हफ़्तों हो गए उनसे मिले-बिछड़े हमें यारा ?
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किस किस को है परवाह तेरी जमाने में आज
बस एक बार, तू जीते-जी मर कर तो देख ??
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1 comment:
अपने अपने छोर में, अपनी अपनी डोर।
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