उनकी गलियों में, पाँव रखने से पहले ज़रा सोच लेते
वो हिन्दोस्तां की तरह, तुम्हारे बाप की जागीर नहीं है ?
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सच ! आज उन्ने, उनकी फोटो पे चैंप दी है गजब की कमेन्ट
ऐंसा लगता है 'उदय', फेसबुकिया मेट्रो में, है वीराना छाया ?
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मेहमानों को, घुसपैठिया कहना जायज नहीं है 'उदय'
क्योंकि - अब वो सरहद पे नहीं, अपने आँगन में हैं ?
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अब तुम 'उदय', हिन्दी औ हिन्दी साहित्य की बातें न करो
इक ये ही तो डगर है, जहाँ जिन्दों की कहीं कोई क़द्र नहीं ?
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बहुत अच्छे भी नहीं हैं ख्याल तुम्हारे 'उदय'
फिर भी कहते हो तो चलो हम मान लेते हैं ?
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5 comments:
सन्नाट..
sundar
sundar
उनकी गलियों में, पाँव रखने से पहले ज़रा सोच लेते
वो हिन्दोस्तां की तरह, तुम्हारे बाप की जागीर नहीं है ?
very right,,,
अब तुम 'उदय', हिन्दी औ हिन्दी साहित्य की बातें न करो
इक ये ही तो डगर है, जहाँ जिन्दों की कहीं कोई क़द्र नहीं ?
..बहुत खूब!
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