Monday, April 15, 2013

एहसान ...


हम जानते हैं 'उदय', हम कभी, उनके लिए नहीं लिखते 
जो, ....... चाहकर भी, कभी पल्लु से बाहर नहीं आते ?
... 
हद है 'उदय', जैसे कल ही सरकार बन रही हो उनकी 
जो आज, आपस में, खुद ही खेल रहे हैं राजा-राजा ?
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सच ! बहुत काफी हुए मुझपे तेरे एहसान अब यारा 
मुझे भी चूम लेने दे, कि - कुछ हो जाऊं मैं हल्का !!
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लो, अब वो भी उनके इशारों पे खूब नाँच रहे हैं 'उदय' 
सच ! ......................... वे गजब मदारी निकले ?
... 
उफ़ ! कहीं हम गिर न जाएँ गश खाकर 'उदय' 
तरह तरह के तंग लिबासों में देख कर उनको ?
... 

3 comments:

Rajendra kumar said...

बहुत ही सार्थक प्रस्तुति जैसे आप चाह कर भी अपने ब्लॉग से बाहर नही जाते,सादर आभार.

Rajesh Kumari said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /४/ १३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।

Arun sathi said...

जो आज, आपस में, खुद ही खेल रहे हैं राजा-राजा ?

WAH KHOOB