Friday, April 12, 2013

ढोंग ...


हम कैसे उनको उनके हाल पे छोड़ दें 'उदय' 
आखिर, उनका होना ही तो हमारा होना है ? 
... 
उफ़ ! जिनके चहरे पे झलक रहा है ढोंग 
फिर भी उन्हें,...पंडित कह रहे हैं लोग ?
... 
तुम्हें तो अक्सर ही हम सुनते आये हैं 'उदय' 
कभी हमारी भी तो तनिक सुन लिया कीजे ?
... 
तुम जब मिलते हो तो हम हंस लेते हैं, वर्ना 
लाख बहाने भी कम पड़ते हैं हंसने के लिए ?
... 
सच ! आखिर उन्हें भी तो, खुद को आजमाना था 
बस इसी फिराक में, वो देख के मुस्कुराए थे हमें ? 
... 

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सुन्दर

Rajendra kumar said...

बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,अबह्र.