हम जानते हैं 'उदय', हम कभी, उनके लिए नहीं लिखते
जो, ....... चाहकर भी, कभी पल्लु से बाहर नहीं आते ?
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हद है 'उदय', जैसे कल ही सरकार बन रही हो उनकी
जो आज, आपस में, खुद ही खेल रहे हैं राजा-राजा ?
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सच ! बहुत काफी हुए मुझपे तेरे एहसान अब यारा
मुझे भी चूम लेने दे, कि - कुछ हो जाऊं मैं हल्का !!
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लो, अब वो भी उनके इशारों पे खूब नाँच रहे हैं 'उदय'
सच ! ......................... वे गजब मदारी निकले ?
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उफ़ ! कहीं हम गिर न जाएँ गश खाकर 'उदय'
तरह तरह के तंग लिबासों में देख कर उनको ?
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3 comments:
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति जैसे आप चाह कर भी अपने ब्लॉग से बाहर नही जाते,सादर आभार.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /४/ १३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
जो आज, आपस में, खुद ही खेल रहे हैं राजा-राजा ?
WAH KHOOB
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