हद है ! अनशन को उपवास बता रही है मीडिया
अब इसे,.....क्यूँ न हम उनकी बेशर्मी समझें ?
...
ये दोस्ती का ही तो असर है शायद, कि -
हम नजर में हैं, औ नजर से दूर भी हैं ?
...
सच ! अब हम, किसको सुबह, औ किसको शाम कहें
मुहब्बत में, हर घड़ी नवतपे सी लपटें उठा करती हैं ?
...
दुनियादारी का हुनर कोई उनसे सीखे 'उदय'
चवन्नी छाप होके भी सरकार बने बैठे हैं ?
...
एक अर्से के बाद नजर आये हैं हुजूर
शायद हमसे ही कोई खता हुई होगी ?
...
3 comments:
badhiya kavita
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार2/4/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
सुंदर एवं भावपूर्ण रचना...
आप की ये रचना 05-04-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। आप भी इस हलचल में अवश्य शामिल होना।
सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
Post a Comment