कुछ गरीबों का पेट,....भर देता,..... बचा रात का भोजन
मगर अफसोस, उनकी नाफरमानियों ने बुसा दिया उसे ?
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जलाये रक्खो खुद को, राहों में बहुत अंधेरा है
न जाने किस के, ये उजाले काम आ जाएँ ??
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लो, मिला है मौक़ा उन्हें, उंगली उठाने का, मेरे किरदार पे
जिन्ने,.....दलाली, बेईमानी से, खुद को तराशा है 'उदय' ?
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वैसे तो, चित्त भी उनकी है...औ पट्ट भी उनकी
बस, सनसनी के लिए, वो सिक्का उछालते हैं ?
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सच ! वो नसीब से नहीं, तरकीब से जीते हैं
वर्ना, तीन बादशे अपने, पिटते नहीं 'उदय' ?
1 comment:
बहुत ही सुन्दर
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