सच ! गर तेरी खामोशियों को पढ़ना, हमने सीखा नहीं होता
तो शायद, तेरी चाहतों से अब तलक,..हम अंजान ही रहते ?
...
आज, जिसे देखो वही जल्दी में है
तनिक जल्दी....हमें दे दो 'उदय' ?
...
रात के किसी भी पहर, ठिकाना बदल लेते हैं हम
अब, कमजोर चारदीवारियों पे...भरोसा नहीं रहा ?
...
सच ! लिखने के शौक से लिख लेते हैं हम 'उदय'
वर्ना, छपने की लालसा कभी जेहन में नहीं रही ?
...
लौंडे किये हैं पैदा, कमाल के उन्ने
न घर के दिखे हैं, और न घाट के ?
1 comment:
गहरा व सन्नाट
Post a Comment