अब तुम, ये किस जिद में हो, हमें जाने दो
कहीं ऐंसा न हो, तुम...........तुम न रहो ?
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सच ही है 'उदय', हर एक आदमी में हैं दस-बीस आदमी
बस, टटोलोगे, तो सब.......एक-एक कर मिल जायेंगे ?
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हमारे अल्फाज 'उदय', हमारे किसी काम के नहीं लगते
पर, कोई चाहे तो, सहारे उनके......पार कर ले दरिया ?
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खरीद-फरोख्त के दौर में भी, पिछड़ गए हैं हम
जज्बातों के सौदे, हम से मुमकिन नहीं ठहरे ?
4 comments:
गहरे...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है|
जज्बातों के सौदे मुमकिन नहीं हमसे ...
कोई नहीं , कुछ ऐसे भी गुजार लेंगे !
भावपूर्ण !
खरीद-फरोख्त के दौर में भी, पिछड़ गए हैं हम
जज्बातों के सौदे, हम से मुमकिन नहीं ठहरे ?waah marm ki baat
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