हमें राख समझ के वो घड़ी-घड़ी छेड़ रहे थे 'उदय'
जला जो हाँथ तो गलतफहमियाँ दूर हुईं उनकी ?
...
बहुत तडफेंगे वो, अब इस मुलाक़ात के बाद
क्यों ? ...
क्योंकि -
अब हमारा लौटना मुमकिन नहीं लगता ??
...
हमने तो उन्हें, जब भी देखा है, रंग-बिरंगे दुपट्टों में ढका देखा है
पर ऐंसा सुनते हैं 'उदय', फुर्सत से...........तराशा गया है उन्हें ?
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क्यूँ न, खुशी और गम के बीच
हम,......... इक पुल बना लें ?
...
'टोपीबाजी' के हुनर में तो वे जन्मजात माहिर हैं 'उदय'
पर आज उन्नें, ............ 'हैट' ही पहना दिया सबको ?
1 comment:
हमें राख समझ के वो घड़ी-घड़ी छेड़ रहे थे 'उदय'
जला जो हाँथ तो गलतफहमियाँ दूर हुईं उनकी ?
...
बहुत तडफेंगे वो, अब इस मुलाक़ात के बाद
क्यों ? ...
क्योंकि -
अब हमारा लौटना मुमकिन नहीं लगता ??
बहुत ही बढियाँ....
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