Wednesday, March 13, 2013

मुहब्बत ...


जी चाहता है 'उदय', डूब जायें उनमें 
गर खो भी गए तो गिला नहीं होगा ? 
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लो, आज सारा शहर, हमसे.........बेइन्तहा नाराज है 'उदय'
वजह, कुछ ख़ास नहीं, कल हमने उनकी हाँ में हाँ नहीं भरी ? 
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अब मर्जी तुम्हारी, जो चाहे नाम ले लो 
बेरहम कह लो,.....या बेवफा कह लो ? 
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लो, दफ़्न हो गई, कल.....एक और मुहब्बत 
उनकी............................खामोशियों में ? 
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झूठे दिलासों को....हथियार बनाया था उन्ने 
और एक हम थे, जो उनपे एतबार करते रहे ? 
... 

1 comment:

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर शेर.