Saturday, March 2, 2013

फुर्सत से ...


हमें राख समझ के वो घड़ी-घड़ी छेड़ रहे थे 'उदय' 
जला जो हाँथ तो गलतफहमियाँ दूर हुईं उनकी ? 
... 
बहुत तडफेंगे वो, अब इस मुलाक़ात के बाद 
क्यों ? ...
क्योंकि -
अब हमारा लौटना मुमकिन नहीं लगता ??
... 
हमने तो उन्हें, जब भी देखा है, रंग-बिरंगे दुपट्टों में ढका देखा है 
पर ऐंसा सुनते हैं 'उदय', फुर्सत से...........तराशा गया है उन्हें ?
... 
क्यूँ न, खुशी और गम के बीच 
हम,......... इक पुल बना लें ? 
... 
'टोपीबाजी' के हुनर में तो वे जन्मजात माहिर हैं 'उदय' 
पर आज उन्नें, ............ 'हैट' ही पहना दिया सबको ? 

1 comment:

मेरा मन पंछी सा said...

हमें राख समझ के वो घड़ी-घड़ी छेड़ रहे थे 'उदय'
जला जो हाँथ तो गलतफहमियाँ दूर हुईं उनकी ?
...
बहुत तडफेंगे वो, अब इस मुलाक़ात के बाद
क्यों ? ...
क्योंकि -
अब हमारा लौटना मुमकिन नहीं लगता ??
बहुत ही बढियाँ....