उफ़ ! बड़ी अजीबो-गरीब है, .............. मुहब्बत उसकी
कभी हंस के लिपटती है, तो कभी सहम के छिटकती है ?
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मरते मरते भी... मौत न आई मुझको
बस, तेरी एक उम्मीद ने ज़िंदा रक्खा ?
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गुनह उनका, ..... काबिल-ए-माफी नहीं है दोस्त
कलम की आड़ में, लूट मकसद हुआ था उनका ?
6 comments:
साधू-साधू
साधू-साधू
bahut khoob kaha...
anu
बहुत बढ़िया सर!
सादर
achhi panktiyan hain.
shubhkamnayen
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
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