अब देखते हैं 'उदय', कितने 'आम' ....... सरेआम होते हैं
या फिर, चोरी-छिपे किसी-न-किसी के 'ख़ास' बने रहते हैं ?
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कुछ तो शर्म करो, ........... बेशर्मो
देश की आबरू सरेआम लुट रही है ?
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हे 'खुदा', ............ मेरे उस रकीब को तू सलामत रख
भले बद्दुआ में सही, उसकी इबादत में मेरा नाम तो है ?
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बात पते की, पते पे पहुँच गई है
आओ यारो, ..... जश्न मनाएं ?
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उफ़ ! भूख से बच्चे बिलख के सो गए हैं
तनिक देर हो गई तन उसको बेचने में ?
2 comments:
उफ़ ! भूख से बच्चे बिलख के सो गए हैं
तनिक देर हो गई तन उसको बेचने में ?
बहुत दर्द है इन शेरों में खास कर अंतिम
अंतिम पंक्तियाँ बहुत कुछ इस समाज के बारे में बयाँ करती है ..
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