उन्हें चिट्ठी लिखी, और खुद ही डर के फाड़ डाली
मुहब्बत में 'उदय', ये दौर भी... देखा है हमने ?
...
आज, बेहद हंसी मौक़ा है 'उदय', ............... दुकां सजाने का
क्योंकि - कदम कदम पे उनको जीत के फार्मूलों की दरकार है ?
...
बेरुखी पे, तुम एतबार मत करना
'रब' जानता है, मजबूरियां हमारी ?
...
वैसे तो उन्ने 'उदय', हमें बदनाम करने का बीड़ा उठाया था
पर लग रहा है ऐंसे, जैंसे वे खुद का बंठाधार कर रहे हों ??
...
इक दिन 'उदय', दलालों-औ-भ्रष्टाचारियों की भी मजारें होंगी
लोग सिद्दत से, ...................... 'हुनर' की दुआएँ मांगेंगे ?
2 comments:
उन्हें चिट्ठी लिखी, और खुद ही डर के फाड़ डाली
मुहब्बत में 'उदय', ये दौर भी... देखा है हमने ?
Very nice,...
बहुत सन्नाट..
Post a Comment