Saturday, November 24, 2012

मजार ...


छपने की लालसा, 
कब की हमने 
दफ्न कर दी है 'उदय' 
अब 'खुदा' ही जाने, 
कब वहां -
इत्र ... 
फूल ... 
चादरें ... 
चढ़ाई जाएंगी ???

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

छोड़़ दिया जब, मन क्यों धरना।

Kulwant Happy said...

उम्‍दा खयालात

कविता रावत said...

bahut khoob!