Monday, October 15, 2012

बेगुनाही के सबूत ...


भृष्टाचारियों, तुम खुद ही तुम्हारी हदें तय कर दो 
ताकी, उसके बाद ही, हम तुम्हारे ... गिरेबां पकड़ें ? 
... 
तमाम सबूतों और गवाहियों के बाद भी, गुनहगारों की अकड़ कायम है  
लंगड़े, लूले, गूंगे, बहरे .... अब, न्याय की चाह में जाएँ तो जाएँ कहाँ ?
... 
न तो शर्म है उन्हें, और न ही वे बेक़सूर हैं 'उदय' 
बस, सत्ता का कवच है, ..... सही-सलामत हैं ? 
... 
क्या खूब, आज उन्ने, खुद ही खुद को, बेक़सूर सिद्ध किया है 'उदय'
लगता नहीं कि अब ... अदालतों व जाँच एजेंसियों की जरुरत होगी ? 
... 
दो-एक तस्वीरें, रसीदें व आयोजनों के झूठे-सच्चे आंकड़े 
उफ़ ! ये, खुद की नजर में, खुद की बेगुनाही के सबूत हैं ?

2 comments:

Unknown said...

चर्चा मंच सजा रहा, मैं तो पहली बार |
पोस्ट आपकी ले कर के, "दीप" करे आभार ||

आपकी उम्दा पोस्ट बुधवार (17-10-12) को चर्चा मंच पर | सादर आमंत्रण |
सूचनार्थ |

virendra sharma said...

बेगुनाही के सबूत ...

भृष्टाचारियों, तुम खुद ही तुम्हारी हदें तय कर दो ...........भ्रष्टाचारियों ......
ताकी, उसके बाद ही, हम तुम्हारे ... गिरेबां पकड़ें ?
...
तमाम सबूतों और गवाहियों के बाद भी, गुनहगारों की अकड़ कायम है
लंगड़े, लूले, गूंगे, बहरे .... अब, न्याय की चाह में जाएँ तो जाएँ कहाँ ?
...
न तो शर्म है उन्हें, और न ही वे बेक़सूर हैं 'उदय'
बस, सत्ता का कवच है, ..... सही-सलामत हैं ?
...
क्या खूब, आज उन्ने, खुद ही खुद को, बेक़सूर सिद्ध किया है 'उदय'
लगता नहीं कि अब ... अदालतों व जाँच एजेंसियों की जरुरत होगी ?
...
दो-एक तस्वीरें, रसीदें व आयोजनों के झूठे-सच्चे आंकड़े
उफ़ ! ये, खुद की नजर में, खुद की बेगुनाही के सबूत हैं ?
प्रस्तुतकर्ता उदय - uday
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भाई साहब पूरी गजल ही काबिले दाद है .क्या मतला क्या मक्ता .हिन्दुस्तान का आम आदमी इनके बारे में कैसे सोचता है -देखिये

जुल्म की मुझ पर इन्तहा कर दे ,

मुझसा बे -जुबां कोई मिले न मिले .