वे दिल पे दस्तक तो देते हैं, पर अन्दर नहीं आते
'रब' ही जाने, ये उनकी अदा है, या मजबूरियाँ हैं ?
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गर, आज इस मुल्क में, सख्त क़ानून होते 'उदय'
तो इन घमंडियों के ..... सर कलम हो गए होते ?
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गरीबों, किसानों, मजदूरों से जी नहीं भरा था उनका
तब ही तो, लंगड़े-लूलों पे ... कहर बरपा है उनका ?
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वे रोज प्रोफाइल पिक्चर बदल बदल के वाह-वाही लूट लेते हैं
काश ! ये हुनर ......................... हम में भी होता 'उदय' ?
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पिन चुभा-चुभा के, क्यूँ सता रहे हो यार
खंजर ही सीने में ... क्यूँ उतार नहीं देते ?
2 comments:
"पिन चुभा-चुभा के, क्यूँ सता रहे हो यार
खंजर ही सीने में ... क्यूँ उतार नहीं देते ?"
क्या खूब, क्या खूब!
हाँ एक ही बार में काम तमाम..
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