मंशा ...
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वो, मेरी आँखों के सामने
काला-पीला करते रहें
और मैं, खामोश देखता रहूँ
यही है उनकी मंशा !
काश ! खुद-ब-खुद ... मैं ...
हो जाता ...
उनकी मंशा के अनुरूप !!
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धूर्त ...
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ऐ ... हाँ ... हाँ ... तू ...
मूर्ख ... पाखंडी ...
तू ...
अपने आप को बहुत बड़ा ...
ज्ञानी ... मत समझ !
मुझे ...
हाँ ... मुझे ... पता है !!
तू ...
कितना बड़ा ... धूर्त है !!!
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जहर ...
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ऐ दोस्त ...
मैं जानता हूँ, तुम्हारे अन्दर
मेरे लिए
बहुत जहर भरा हुआ है
जिसे तुम ... मौके-बे-मौके ...
उगलते रहते हो !
पर, क्या मिला तुम्हें -
आज तक ?
शायद कुछ भी नहीं !!
न तो तुम
मुझे अपने जहर से मार पाए !
और न ही
तुम किसी शिखर को छू पाए !!
फिर क्यों -
तुम खुद को बदल नहीं लेते ?
कहीं ऐंसा न हो -
किसी दिन ... उलटा ...
ये जहर तुम्हारी जान ले ले ??
1 comment:
गहरी अभिव्यक्ति..
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