ज़रा समय की नींद तो खुल जाने दो 'उदय'
फिर देखते हैं, फकीरी हमारी औ अमीरी जमाने की !
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छपने-छपाने के दस्तूर खूब निराले हैं 'उदय'
उफ़ ! हम भेजेंगे नहीं, और वो छापेंगे नहीं ?
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ऐ दोस्त, ये फकीरी कोई सजा नहीं है
ये तो अंतिम रास्ता है मेरे मुकाम का !
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ये कैंसे लोगों की बस्ती है 'उदय'
जहां लोग, मुर्दों के ढेर में तमगे तलाश रहे हैं ?
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ये भ्रम था तेरा, कि - ............ हम तेरे दीवाने हैं
पर सच्चाई तो ये है कि - हम तुम्हें चाहते बस हैं !
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ताउम्र हम अपने हांथों की लकीरों को चमकाते रहे
पर पहुँचना था यहाँ, लो, न चाहकर भी पहुँच गए !
3 comments:
ताउम्र हम अपने हांथों की लकीरों को चमकाते रहे
पर पहुँचना था यहाँ, लो, न चाहकर भी पहुँच गए !
अन्ततः वही होता है।
baDhiyaa!!
बेहद उम्दा ...
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