मर्जी थी उनकी, या सितमगर भी था कोई
सितम होते रहे, सितम सहते रहे !
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क्या करें, पत्थर सा मन भी, मोम अब होता नहीं
कडुवा सच कहते-सुनते, आज बैरी हुआ संसार है !
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क्यूँ नहीं करते दुआ कि स्वर्ग सा हो ये जहां
कौन जाने, मौत के उस पार भी होगा जहां ?
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जिनके नाम से दिल-औ-दिमाग में, बढ़ने लगी टकराहट है
फिर भी कह रही है जुबां, उन्हीं से चाहत है !
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हे 'सांई' तू मुझे भी गद्दारी व मक्कारी का हुनर दे दे
सच ! अब सादगी से, मेरा मन भर गया है !!
2 comments:
जिनके नाम से दिल-औ-दिमाग में, बढ़ने लगी टकराहट है
फिर भी कह रही है जुबां, उन्हीं से चाहत है !
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हे 'सांई' तू मुझे भी गद्दारी व मक्कारी का हुनर दे दे
सच ! अब सादगी से, मेरा मन भर गया है !!
ati sundar, itana jarur kahuuga,ki saadagii mat chhodiyegaa.yah vyaktitv kii sahii pahachaan hae.
haa aaj ke haalaat esa sochane par majabuur jarur karate hae.
सादगी, बरबादगी बनी..
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