Wednesday, January 11, 2012

न जाने क्यूँ ...

न जाने क्यूँ
पुरुस्कारों की बस्ती की ओर
मेरे पांव नहीं बढ़ते !

न जाने क्यूँ
उन संकरी गलियों से गुजरने को
मेरा जी नहीं मचलता !

न जाने क्यूँ
ऐंसा लगता है वहां कदम रखते ही
मेरा दम घुटने लगेगा !

न जाने क्यूँ
कब तक ? मेरा मन, मेरा दिल
ऐंसा है, ऐंसा रहेगा !!

6 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सपनों में रमना सीख लिया,
अपनों में रमना सीख लिया,
कुछ चाह तजी, कुछ आह तजी,
कौड़ी बन बिकना सीख लिया।

***Punam*** said...

न जाने क्यूँ
कब तक ? मेरा मन, मेरा दिल
ऐंसा है, ऐंसा रहेगा !!

pata nahin kyun..?
kuchh kuchh man mera bhi yahi kahta hai....!!

***Punam*** said...

न जाने क्यूँ
कब तक ? मेरा मन, मेरा दिल
ऐंसा है, ऐंसा रहेगा !!

pata nahin kyun..?
kuchh kuchh man mera bhi yahi kahta hai....!!

नुक्‍कड़ said...

कह तो आप सच ही रहे हो

Gyan Darpan said...

सच्ची बात

Gyan Darpan
..

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-756:चर्चाकार-दिलबाग विर्क