Wednesday, January 11, 2012

गुस्सा ...

आज, वह बहुत खुश है, पुरूस्कार पाकर
पुरूस्कार कैसे मिला है ?
कितने 'तीन-पांच-तेरह' औ 'पांच-तीन-अठारह' किये हैं
मैं सब जानता हूँ !

और वह जानता है, मेरी आदत
कि -
यदि वह ज्यादा देर मेरे सामने रहा तो
मैं उसे पकड़ के मुरकेट दूंगा !

फिर भी
वह बेवजह, मेरे सामने ही खुश हो रहा है
नांच रहा है, गा रहा है
और तो और मुझे चिढाने पर उतारू है !

मैंने दे दी है उसे, बधाई
और कह भी दिया है, मुझे बहुत खुशी हुई है
फिर भी, वह -
शायद जाना ही नहीं चाह रहा है !

क्या करूँ ?
कहीं मेरा गुस्सा आसमान न छूने लगे
गुस्से ही गुस्से में, मैं उठूँ -
और उठकर, कहीं उसका टेटुआ न दबा दूँ ??

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