एक के ऊपर एक
फिर
एक के ऊपर एक
ईटें जमा कर
उन पर मिट्टी का गारा चढ़ा कर
किसान
सुकूं से बैठा था !
ठीक उसी पल
घने मेघ उमड़ आए, और -
बारिश की बूँदें टपकने लगीं
देखते ही देखते
मिट्टी का गारा, ईंटों से -
निकल कर, पानी संग बह गया !
फिर से
पहले की तरह, एक बार और
किसान का मकान
बनते बनते रह गया !
और
देखते ही देखते
उसकी मेहनत पर पानी फिर गया !
अब फिर से उसे
पहले की तरह, किसी दिन
मिट्टी खोद कर
गारा -
और मकान बनाना पडेगा
कहीं, फिर से
उस दिन भी बारिश न आ जाए ... !!
2 comments:
कौन बनाये फिर से गारा,
बारिश होगी, बह जायेगा..
आपके इस उत्कृष्ठ लेखन के लिए आभार ।
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