Friday, January 27, 2012

किसान का मकान ...

एक के ऊपर एक
फिर
एक के ऊपर एक
ईटें जमा कर
उन पर मिट्टी का गारा चढ़ा कर
किसान
सुकूं से बैठा था !

ठीक उसी पल
घने मेघ उमड़ आए, और -
बारिश की बूँदें टपकने लगीं
देखते ही देखते
मिट्टी का गारा, ईंटों से -
निकल कर, पानी संग बह गया !

फिर से
पहले की तरह, एक बार और
किसान का मकान
बनते बनते रह गया !
और
देखते ही देखते
उसकी मेहनत पर पानी फिर गया !

अब फिर से उसे
पहले की तरह, किसी दिन
मिट्टी खोद कर
गारा -
और मकान बनाना पडेगा
कहीं, फिर से
उस दिन भी बारिश न आ जाए ... !!

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कौन बनाये फिर से गारा,
बारिश होगी, बह जायेगा..

सूत्रधार said...

आपके इस उत्‍कृष्‍ठ लेखन के लिए आभार ।