अब मुझे, उससे कोई उम्मीद तो नहीं है
पर उसे, कुछ देने में, हर्ज भी तो नहीं है !
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वजह हो भी - या न भी हो, क्या फर्क पड़ता है
दिल जो टूटा है, भला उसको क्या दिलासा दें ?
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देश में वैसे ही ढेरों नुक्कड़ नाटक चल रहे हैं
एक और सही ... किसे, क्या फर्क पड़ता है !
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आज हर आदमी की जेब में, तीन-चार चेले-चपाटे हैं
जो कुरूपता दिखलाये, उसे उससे क्या लेना-देना है !
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क्यूँ करे ? वो भला चिंता किसी की
कौन-सा उसको, कोई पुरूस्कार लेना है !!
2 comments:
सब अपने में जी लेते है,
विष या अमृत, पी लेते हैं।
bhaai hme to frq pdhta hai .. akhtar khan akela kota rajsthan
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