Sunday, January 22, 2012

... किसे, क्या फर्क पड़ता है !

अब मुझे, उससे कोई उम्मीद तो नहीं है
पर उसे, कुछ देने में, हर्ज भी तो नहीं है !
...
वजह हो भी - या न भी हो, क्या फर्क पड़ता है
दिल जो टूटा है, भला उसको क्या दिलासा दें ?
...
देश में वैसे ही ढेरों नुक्कड़ नाटक चल रहे हैं
एक और सही ... किसे, क्या फर्क पड़ता है !
...
आज हर आदमी की जेब में, तीन-चार चेले-चपाटे हैं
जो कुरूपता दिखलाये, उसे उससे क्या लेना-देना है !
...
क्यूँ करे ? वो भला चिंता किसी की
कौन-सा उसको, कोई पुरूस्कार लेना है !!

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सब अपने में जी लेते है,
विष या अमृत, पी लेते हैं।

आपका अख्तर खान अकेला said...

bhaai hme to frq pdhta hai .. akhtar khan akela kota rajsthan