Sunday, January 8, 2012

... सूतम-सूत !

'सांई' जाने, और कितनी दूर है मंजिल मेरी
अब है दुआ, ये पग इरादों तक पहुंचने चाहिए !
...
सूतम-सूत दबा के सूत
तन औ मन तक सूतम-सूत !
...
सच ! न तो उन्हें हमसे, और न ही हमें उनसे परहेज है
बस एक फासला है, दो कदमों का, उधर भी - इधर भी !
...
चलो माना, हम आज तेरे शहर के न सही
पर ये न भूलो, शहर से रिश्ता दिलों का है !
...
आज फिर उसने 'खुदा' खुद को कहा है
अब देखते हैं, क्या इरादे हैं जेहन में !!

2 comments:

kshama said...

सच ! न तो उन्हें हमसे, और न ही हमें उनसे परहेज है
बस एक फासला है, दो कदमों का, उधर भी - इधर भी !
Wah!

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह..