चारों ओर
बड़ी बड़ी दीवारें खड़ी हैं
तुम चीखोगे
तो जरुरी नहीं कि तुम्हारी आवाज
उस ओर
किसी के कानों तक पहुंचेगी !
गर, पहुँच भी गई
तो यह कतई जरुरी नहीं
कि -
जिसके कानों तक पहुँची है
इन दीवारों के बीच
उसकी भी एक दीवार न हो !
इस तरह
तुम्हारी आवाज दब के रह जायेगी
या फिर गूंजती रहेगी
फिर क्या करोगे ?
क्या कोई और विकल्प है -
तुम्हारे पास ??
2 comments:
एक दिन अवश्य कुछ न कुछ अच्छा होगा.
विकल्पहीन जनता..
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