Monday, December 26, 2011

साहित्य सेवा ...

मियाँ, आप भी, अपनी एनर्जी -
फालतू
बेफिजूल
इधर-उधर जाया कर रहे हो !

और तो और, ख़ामो-खां
क्यूँ -
किसी से भी लड़-भिड़ रहे हो !

आओ, चले आओ, हमारी 'गैंग' में -
बेझिझक शामिल हो जाओ
कुछ न कुछ
'तमगे' तुम्हें भी मिल जायेंगे !

आखिर ये 'गैंग' -
हम
इसीलिये ही तो चला रहे हैं !!

और नहीं तो क्या !
क्या तुम ये सोच रहे हो
कि -
यहाँ बैठ के -
हम साहित्य सेवा कर रहे हैं !!

1 comment:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

हम तो आपकी ही गैंग में कब हैं भैया, आप ही भूल जाते हो :)