Sunday, December 25, 2011

लगन ...

सच ! मुझे लगा था
कि -
तुम्हारी -
ठुकाई-पिटाई से
उठक-बैठक से
छैनी-हथोडी की मार से
गेंती-फावड़े से
कुल्हाड़ी से, हल से
शायद
मैं संवारा न जा पाऊँ ...
लेकिन
शायद
किन्तु
परन्तु
तुम ने कर दिखाया !
मैं उपजाऊ हो गया हूँ !!

2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

यानि अब शब्द , एहसास .... बंजर नहीं होंगे

सदा said...

बहुत ही बढि़या ।