मियाँ, आप भी, अपनी एनर्जी -
फालतू
बेफिजूल
इधर-उधर जाया कर रहे हो !
और तो और, ख़ामो-खां
क्यूँ -
किसी से भी लड़-भिड़ रहे हो !
आओ, चले आओ, हमारी 'गैंग' में -
बेझिझक शामिल हो जाओ
कुछ न कुछ
'तमगे' तुम्हें भी मिल जायेंगे !
आखिर ये 'गैंग' -
हम
इसीलिये ही तो चला रहे हैं !!
और नहीं तो क्या !
क्या तुम ये सोच रहे हो
कि -
यहाँ बैठ के -
हम साहित्य सेवा कर रहे हैं !!
1 comment:
हम तो आपकी ही गैंग में कब हैं भैया, आप ही भूल जाते हो :)
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