Thursday, December 15, 2011

मुर्दे ...

अब
आजादी की दरकार नहीं है !
क्यों, क्योंकि -
यहाँ कोई ज़िंदा नहीं है !
जो भी हैं -
जितने भी हैं, सब मुर्दे हैं !
सब अपना -
ईमान बेच चुके हैं !
मुर्दे -
आजाद होकर क्या करेंगे ??

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जीने की चाह सबको हो, आने वाली पीढ़ी को तो और भी।

Rajesh Kumari said...

rosh ke bhaav jagati hui kshanika.