Friday, August 19, 2011

एक नई मंजिल की ओर !!

कभी कभी
चलते चलते, राह में
हम
सहम से जाते हैं
कुछ देखकर, कुछ भांप कर
ज़रा-ज़रा सी आहट पर !

कभी कुछ होता है -
कभी कुछ नहीं भी होता है !

पर
जब हम सहम जाते हैं
तब
न चाहकर भी, कुछ पल को
हम
सहमे ही रहते हैं !

होता है अक्सर
न चाहते हुए भी, न चाहकर भी !
फिर
चलते हैं, चल पड़ते हैं,
हम
आगे की ओर !

थोड़ा थोड़ा सहमे हुए ही, पर
चलते चलते
मिलता है, फिर, धीरे धीरे
हौसला हमें
आगे बढ़ने के लिए,
तेज चलने के लिए !

फिर
ठहरते नहीं, सहमते नहीं
चलते, चले चलते हैं
हम
नए हौसले, नए जज्बे,
नए कदमों संग
धीरे धीरे ...
एक नई मंजिल की ओर !!

2 comments:

JAGDISH BALI said...

गिर कर संभलना, उठ कर चलना ही जीवन है ! Nice posting.

प्रवीण पाण्डेय said...

यही जीवन है।