Friday, August 19, 2011

... डरे हो, या डरा रहे हो !!

पल-पल ख़्वाब उड़ते रहे बुलबुलों की तरह
तेरे आगोश में सिमटते ही, फना हो गए !!
...
गर चाहें भी तो अब खुद पे यकीं नहीं होता
कोई बेइंतेहा चाहता रहा, हम खामोश रहे !
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नहीं मुमकिन छिपा पाना खुदी को आईने में
कभी आँखें, कभी साँसें, हकीकत बोलती हैं !

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भ्रष्ट-घपलेबाज कर रहे, क़ानून की ऐंसी की तैंसी
लग रहे इल्जाम उन पर, जिनकी दम नहीं ऐसी !
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ये कैसा मुल्क है, और हैं सियासतें कैसी
उफ़ ! गरीबों की हो रही, ऐंसी की तैंसी !!
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क्या खूब बयां किये हैं, किसी ने जज्बातों को
सच ! हम हार भी रहे हैं और जीत भी रहे हैं !!
...
क्या खूब अंदाज है देखने का
उफ़ ! डरे हो, या डरा रहे हो !!
...
सच ! न कद, न काठी, मेरी शिखर-सी है
मैं अन्ना हूँ, सड़क का आदमी हूँ !!

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